¿Qué quiere decir mi padre cuando dice que somos Saryupaareen Brahmins de Vatsa Gotra y Pyaasi Mishra?

Primero uno debe saber que …

Los brahmanes se clasifican en: –

  1. Panch GaudSarsaswat – Bhatt / Brahmbhatt / Rao / Sharma / Maharaj / Pundit, etc., Kanyakubj – Pathak, Dubey, Chaubey, Pandey, etc. … Utkal- Mohaptra / Misra . Todos estos son Brahmins de Aryavrat Area de la antigüedad.
  2. Panch Dravid – Brahmanes de Deccan y sur de la India Iyer, Iyengar, etc.

Esto es mera clasificación geográfica, nada relacionado con la supremacía o ser superior. “Los brahmanes son brahmanes”

Los brahmines de la saryuparina son un subcasto de los brahmanes Kanyakubj. Saryuparin Vrahmins encuentran su referencia en Ramayana en el momento en que Lord Rama se retiró a orillas del río Saryu después de matar a Ravan. Había hecho brahmhatya asesinato de brahmin fue considerado un pecado. Ninguno de los brahmanes ayudó al Señor Rama a realizar rituales para deshacerse del pecado de matar a un brahmán. Todos se negaron y algunos hijos brahmanes de Kanyakubj los brahmanes tomaron parte por error y tuvieron que enfrentarse a la ira de su familia y a toda la sociedad brahmán de kanyakubj. Brahmanes Fueron rechazados y obligados a cruzar el río Saryu y se les pidió vivir allí como castigo. Por lo tanto, se llaman Saryuparin, saryu Ke Paar …

Vatsa es uno de los Gotra y se te considera descendiente de Sage Vatsa.

Y perteneces al pueblo Pyasi nombre real Pyasi Mishra un lugar asustado en Deoria.

SAU KASHI ME EK PAYASI. Pyasi es un lugar sagrado y muchas personas visitan este pueblo y se bañan en el río Choti Gandak Nadhi …

Daré la respuesta en hindi ya que no se publica un extenso artículo sobre este tema en inglés … Espero que entiendan el hindi. … ¡Donde sea que tengas dudas, pregunta! ¡Te lo puedo explicar en hindi!

QUIENES SON SARYUPAREEN BRAHMINS Y SARYUPAAR REGION:

सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। ऋग्वेद मे सिर्फ़ तीन नदियो का उल्लेख ही है! इनमे सरस्वती, सिंधु और सरयू नदी का ज़िक्र है! सरयूपारीण ब्राह्मण उन्ही मूल कान्य्कुब्ज ब्राह्मणों का दल है जिन्होने भारतीय सभ्यता की नीव पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार मे रखी! ये शुद्ध आर्यवंशी षट्कर्मा वेदपाठी आदिकालिक समूह है जो की आदिकाल से ही ब्राह्मण धर्म का अधिष्ठाता रहा है!
श्रीराम ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में हैं।

ये ब्राह्मण बिहार प्रांत के गोपालगंज, सिवान, छपरा, चंपारण, बक्सर एवं उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर, मऊ, बनारस, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, अवध, कन्नौज और पूरे छत्तीसगढ़ म तक प्रदेश गुजर संख्य संख्य संख्य संख्य संख्य संख्य संख्य संख्य मध्य झारखंड में भी अच्छी-खासी संख्या में हैं! सर्यूपारिणों की बहुतायत संख्या कैरिबियन, मॉरीसस, फिजी, अमेरिका और पुरे विश्व में हैं! समृद्ध समाज होने से सरयूपारीण ब्राह्मण पूरी दुनिया मे फैले हैं और आपस मे बंधुत्व और भाईचारा का रिश्ता रखते हैं और अपनी सनातन साझी विरासत पे गर्व भी करते हैं!

CLASIFICACIONES DE SARYUPAREEN BRAHMINS CON SUS ORÍGENES Y GOTRA:

सरयूपारीण ब्राह्मण तिवारी, त्रिपाठी, त्रिवेदी, मिश्र, शुक्ल, द्विवेदी, दुबे, चतुर्वेदी, चौबे, उपाध्याय, पाठक, दीक्षित, वाजपेयी, पांडे, ओझा उपनाम लगाता है! इन सरयूपारीण ब्राह्मणों के कई घरानो मे पंक्ति की परंपरा चलती है अर्थात ये अपने घराने वाले का बनाया हुआ और अपने घराने वाले के ही साथ भोजन ग्रहण कर सकते हैं!

ब्राह्मणों में तीन-तेरह का प्राचीन प्रचलन तमाम तर्कों से आज तक जूझ रहा है | लोगों का तर्क- कुतर्क बहस का क्षणिक मुद्दा बन, बिना आधार के चलता रहता है | महान ऋषियों की संतान ब्राह्मण बंश आदि काल से अपनी परम्परा पर अपनें- अपनें बंश-गोत्र पर आज भी कायम है | पूर्वजों की परम्परा को देखें तो गर्ग, गौतम, श्री मुख शांडिल्य गोत्र को तीन का तथा अन्य को तेरह में बताया जाता है | गर्ग से शुक्ल, गौतम से मिश्र, श्री मुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी बंश प्रकाश में आता है |

गर्ग (शुक्ल- वंश)

गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे | गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है |

(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट ( १३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव | ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं |

उपगर्ग (शुक्ल-वंश)

उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं |

बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार

यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं |

गौतम (मिश्र-वंश)

गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे |

(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी

इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं |

उप गौतम (मिश्र-वंश)

उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं |

(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा

इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है |

वत्स गोत्र (मिश्र- वंश)

वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे |

(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा

बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है |

कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश)

तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है |

(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी

बशिष्ट गोत्र (मिश्र-वंश)

इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है |

(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी

शांडिल्य गोत्र ( तिवारी, त्रिपाठी -वंश )

शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं |

(१) पिंडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है

इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं | इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घरानाथ मणी घराना है, इन चारों का उदय ँ है भी क क क क क क क कायम है |

उप शांडिल्य (तिवारी- त्रिपाठी, वंश)

इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं |

(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा

भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश)

भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है |

(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर

भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश)

भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है |

(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार

कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पित तमनी क्रमश गौतम गौतम मिश्र मिश्र पोखर पोखर पोखर पोखर य य पोखर य यव पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुब की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें |

सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है |

सावरण गोत्र (पाण्डेय वंश)

सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं |

(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी)

सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)

सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं |

(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ

कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं |

(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ (३) ढडमढीयाँ

ओझा वंश

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं |

(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां

चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)

इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है |

(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां

एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है |

नोट: – खास कर लड़कियों की शादी- ब्याह में तीन तेरह का बोध किया और कराया जाता है | पूर्वजों द्वारा लड़कियों की शादीयाँ गर्ग, गौतम, और श्री मुख शांडिल्य गोत्र में अपने गाँव को छोड़ कर की जाती रहीं हैं | इटार के पाण्डेय व सरार के दुबे के वहां भी यही क्रम रहा है इन पाँचों में लड़कियों की शादी का आदान-प्रदान होता रहा है, इतर गोत्रो में लड़को की शादियाँ होती रहीं हैं | आज- कल यह अपवाद साबित होने लग पड़ा है | ये सारे गाँव जो बताये गये हैं वें गोरखपुर, देवरियां, बस्ती जनपद में खास कर पाए जातें हैं या तो आस-पास के जिले भी हों सकतें हैं, यें सब लोग सरयू पारीण, कूलीन ब्राह्मण की | .

ESPERO QUE TE DA LA RESPUESTA.

Los brahmanes se dividen en varias generaciones según su linaje o conocimiento. Son brahmines gour, brahmines saryupareen, brahmanes kanyakubj, etc. Para obtener más información, consulte Brahmin gotawali o lineología de brahmin. Dices que eres un brahmán saryupareen, lo que significa que perteneces a una clase de brahmanes que pertenecen al linaje de brahmanes originarios de las orillas del río saryu en Ayodhaya, India. Los brahmanes saryupareen se originaron cuando Sri Ram regresó a Ayodhaya después de matar a Ravan. Como Ravana era un brahmán, por lo tanto, su asesinato causó la maldición de Brahm-hatya sobre Sri Ram. Para eliminar esa maldición o dosha, Shri Ram necesita realizar yagya y alimentar a los brahmanes. Pero todos los brahmanes se negaron a asistir a tal función, en este punto Shri Hanuman señaló que todos los niños también son una forma de brahma y, por lo tanto, brahmán. Por lo tanto, alimentar a esos niños también es equivalente a alimentar a los brahmanes. Así, aquellos niños a quienes Shri Ram alimentó en Banks of Saryu se convirtieron en brahmanes saryupareen. Ahora que viene a Vatsa Gotra, entonces Gotra es como un linaje familiar o un apellido. Por lo tanto, perteneces al linaje del sabio Vatsa nacido en la clase de brahmin saryupareen. Lo que entonces es pyaasi Mishra, es el área de tu linaje. Por lo tanto, según su linaje, su generación pertenece al pueblo pyaasi Mishra, que está cerca del presente deoria en uttar pradesh, India.